Irony of the creator
Ajaya Nag
विडंबनाविडंबना भी देखी विधाता की, जब देखे मनुष्य भांति के ।कोई देख रहा जग सारा, किसीके देखने का तरीका न्यारा ।कोई सबल, समर्थ हर कार्य करने को ।किसीके भाग्य ने रोक रक्खा है उसको ।जीवन की ये कैसी गाड़ी ?कैसी इसकी विचित्र विडंबना ?छोटे बड़े पहिए इसके, लगातार हैं चलते रहते ।सागर के पार ले जाकर, वैकुंठ में स्थान दिलाते ।बाधा आती समय-समय पर, जो न टिकते नरख जाते ।तब फिर जाकर दोष मुक्त हो, फिर से जीवन में आगे बढ़ते ।विडंबना देखी विधाता की, जब देखे दृष्टि युक्त और दृष्टिहीन ।किंतु विडंबना ने पराकाष्ठा ऐसी साधी ।कइयों को दृष्टि दी आधे से ज्यादा,कइयों को दी दृष्टि आधी ।।Deep poetic voice with indian instrumental music.